अंध विश्वास (लघु कथा )
जानकी , शंभू की माँ, जीवन के अंतिम पड़ाव पर कड़ी है l अचानक तवियत बिगड़ गई l खाट पर वह अब और तब कर रही थी l शंभू को समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे ? अंत में इलाज के लिए उसने डाक्टर को बुलाया l डाक्टर ने जाँच-पड़ताल शुरू कर दी l और शंभू से अपनत्व दिखाते हुए कहा , ' बेटा शंभू ! फ़ौरन यह दावा ले आवो और माँ को नियमित रूप से खिलाया करो l गंभीर बीमारी नहीं है , खाते ही एक दो रोज में स्वस्थ हो जायगी l लेकिन हाँ ! दवा खिलने में कोताही नहीं बरतना l '
यह सुनते ही शंभू फ़ौरन बाज़ार चला गया दावा लाने l लौटते वक्त एक बिल्ली ने उसका रास्ता कट दिया l वह सडक किनारे बैठ गया l वह इंतजार करने लगा किसी व्यक्ति का जो फिर उस बिल्ली के रास्ते को काट दे l बहुत देर तक वह वहीं रुका रह गया l जब कोई नहीं उस रास्ते से गुजरा और माँ की छटपटाहट का वीभत्स चेहरा दिमाग रूपी ट्रेक पर दौड़ने लगा तो वह फ़ौरन घर की ओर चल पड़ा l
लेकिन यह क्या इतनी देर में उसकी माँ तो गुजर चुकी थी l अपनी गलती को नहीं कोसकर बिल्ली को कोसने लगी l उसे हत्यारिनी और डायन तक कह डाला l
दवा का पैकेट हाथ में ही पड़ा रह गया l अंध विश्वास की चपेट में आकर उसने अपनी माँ को गँवा दिया l दवा तो पुनः लौट जायगी पर माँ अब दोबारा कहाँ लौटने वाली थी l मरने वक्त वह माँ के मुँह में तुलसी और गंगाजल भी नही दे सका l
अंजनी कुमार शर्मा ,सियारामनगर ,भीखनपुर , भागलपुर -812001
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