जैसे जैसे बढ रही, आबादी घनघोर l
और सिमटकर रह गया, जंगल का सब छोर l l 1
होती रहती गाछ पर, ठक ठक कि आवाज l
जिसे कोई साँप पर, झपट रहा हो बाज l l 2
बाढ़ और तूफान से, होते लोग तवाह l
शासक सोते चैन से, होकर वेपरवाह l l 3
शनैःशनैः यह प्रकृति, बदल रही है चाल l
झेल रहे हैं लोग सब, प्रलय सदृश भूचाल l l4
मर जाये जब आदमी, करते सभी विलाप l
मगर पेड़ को काटकर, क्यों खुश होते आप l l 5
ई0 अंजनी कुमार शर्मा(साहित्यकार एवं पर्यवारंविद)
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