हम दूसरों को जो देते है वही हमें वापस मिलता है, प्रेम दें तो प्रेम मिलता है, द्वेष देते हैं तो द्वेष मिलता है। 'प्रेम' त्याग और सेवा के माध्यम से प्रकट होता है। हम जिस वस्तु को अपना मानते हैं, उसे दूसरों के हित में जब त्याग देते है, दूसरों को दान में दे देते हैं, तब प्रेम प्रकट होता है। प्रेम भावना से प्रेरित होकर जब हम दूसरों के हित में कर्म करते है तब हमें उन सत्कर्मों के फल भी अवश्य प्राप्त होते हैं। दूसरे को देने के लिए जब हम एक फूल तोड़ते हैं, तो उस फूल की महक पहले हमें मिलती है। सत्कर्मों के फल सर्वप्रथम करता को प्राप्त होते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें