हर दिशा में जला दीप विश्वास का
लौट आया समय हर्ष उल्लास का
है चतुर्दिक ये उपवन ही उपवन यहाँ
मोल अब चढ़ गया मेरे आवास का
नित्य उत्पन्न होती नई उलझनें
आचरण जो कड़ा है मेरी सास का
देह में प्राण अब शेष हैं ही नहीं
फल मिला मुझको ये मेरे उपवास का
पतझरों के भी जाने से क्या मिल गया
पीटते थे सभी ढोल मधुमास का