शनिवार, 12 अक्टूबर 2013



दो किलो नमक 
 रिक्सावाला इन्तजार में खड़ा-खड़ा झल्ला रहा था। झल्लाते-झल्लाते  मानो बोर  हो गया। 
घंटों बीत जाने के भी वह सवार वापस नहीं आया जो उसके रिक्से से अभी -अभी उतरा था। बीस रुपया भाडा भी नहीं दिया उसने और तो और उतरते वक्त सौ रुपया पैचा भी ले गया।
उतरते ही वह सवार एक गली में घुस गया यह कहकर कि, 
'छुट्टा नहीं है, बाजार से लौटते ही वापस कर दूंगा। तब तक यह झोला रक्खो और दस मिनट तक इंतजार करो मेरा।' 
लेकिन यह क्या , घंटों इंतजार करने के बाद भी वह सवार  वापस नहीं आया। वह तो गली में ही गुम हो गया। तब रिक्से वाले को अपनी गाढ़ी कमाई का सौ रुपया याद आने लगा। रिक्से वाले का सब्र टूटने लगा। ब्यर्थ का समय नष्ट करना उसने उचित नहीं समझा। चलने के पहले सवार द्वारा थमाए झोले का उसने मुआयना किया खोलकर। यह क्या झोले में सिर्फ दो किलो  नमक निकला। 
सवार की ठगविद्या पर रिक्सावाला काफी हतास और निराश हुआ। अपनी बुरबकी पर पश्चाताप भी। प्रस्थान करने से पहले मन ही मन बुदबुदाया, ' ऐसा भी दुनिया में ठग होता है जो गरीबों को भी ठगने से बाज  नहीं आता है। ' 
ई0 अंजनी कुमार शर्मा 
सियारामनगर, भीखनपुर ,
भागलपुर-812001 
मोबाईल -0 7870825272     

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें