बुधवार, 9 जुलाई 2014

bazat par gazal----

ग़ज़ल 
रेल बजट ने छकाया है 
सपना सुन्दर दिखाया है 
यह हाथी दाँत लगता है 
तेल घिसकर चमकाया है 
बुलेट गाड़ी चलेगी कब 
घर घर लोग भरमाया है 
भागलपुर को मिला है क्या 
सबके सब तिलमिलाया है 
इसने सौदा किया है बस 
गौड़ा ही बस समाया  है
नाखुश होकर करोगे क्या 
अंगद तूने बनाया है 
आस बहुत था बजट से क्यों 
साले  साल बहलाया है  
लात लगे मंहगाई का
सबका ही ठोस काया है 
देखो अब अंजनी आगे 
तुमने सर क्यों खपाया है  

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