ग़ज़ल
रंजिसों का मत बढ़ावो जिन्दगी में सिलसिलामीत! मन से मन मिला तू और स्वर से स्वर मिला
प्रेम औ पुचकार की भाषा जहाँ होगी सदा
चेहरा होगा यक़ीनन फूल जैसा ही खिला
अर्थ-युग की दौड़ में जब आदमियत है तवाह
कांपता है आसमा औ कँप रही अपनी इला
जिस तरह शोषित यहाँ अब खो रही इंसानियत
है कहाँ महफूज कोई कौन सुनता है गिला
चूर ही होना अगर है आदमी के स्वप्न को
क्यों न छोड़े हम बनाना रोज ख्वाबों का किला
फांक होती जा रही है जातियां औ धर्म भी
लोग बढ़ते जा रहे अब रोज बँटता है जिला
माफ करना अंजनी बदली यहाँ की अब फिजा
पूजते ही पूजते ख़ुद हो गए अब हम शिला
ई०अंजनी कु० शर्मा
सत्यदेव पथ, सियारामनगर, भीखनपुर,
भागलपुर-८१२००१
मो०-०९८३५०९२९०४
e-mail- eranjanisharma@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें