ग़ज़ल पर्यावरण दिवस पर
पर्यावरण के साथ जहाँ जारी मनमानी है
वहां प्रदुषण की बातें करना बेमानी है
सिर्फ बहस पर बहस , बहस यह बात बतंगर है
ज्यों का त्यों ही पड़ा प्रदूषित वायु-पानी है
पर्यावरण की खातिर धरती दिवस मानते हैं
कदम -कदम पर वृक्ष रोज देता कुर्वानी है
जनसँख्या पर रोक लगे तो रुके प्रदुषण भी
कागज पर ही वृक्ष लगाना भी नादानी है
ठूंठ गाछ में कोंपल आया चिड़ियाँ चहक उठी
पीपल, बरगद ,गुलमोहर में चढ़ी जवानी है
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