ग़ज़ल
छू रहा है आसमा को आज भी यह तिलकपुर
चांदनी में चमकती है मोतियों सा तिलकपुर
दूर से भी लोग आते इस धरा को चूमने
रोशनी भी बांटता है हर तरफ ही तिलकपुर
इस धरा से आ रही है खुशबुएँ साहित्य की
शोहरत के संग रहकर जी रहा है तिलकपुर
मिलकर सबों ने सजाया औ संवारा है इसे
देश को इक सूत्र में लगता पिरोता तिलकपुर
मेहमा भी आकर यहाँ सींचते इस बाग़ को
पल रहा संस्कार में एक अरसा से तिलकपुर
शोभता है वेहरी में गांव का हर छोर ही
अंग के भी लाज को यह तो बचाता तिलकपुर
गंग की धरा इसे है नित्य रोज पखारती
आम के भी मंजरों से महकता है तिलकपुर
लोग भी हर कौम के रहते जहाँ सुख चैन से
एकता का पेश करता है नमूना तिलकपुर
है यही सौभाग्य तेरा पुत्र हो इस गांव के
अंजनी तू देखना बस रौशन रहे तिलकपुर
ई 0 अंजनी कुमार शर्मा
छू रहा है आसमा को आज भी यह तिलकपुर
चांदनी में चमकती है मोतियों सा तिलकपुर
दूर से भी लोग आते इस धरा को चूमने
रोशनी भी बांटता है हर तरफ ही तिलकपुर
इस धरा से आ रही है खुशबुएँ साहित्य की
शोहरत के संग रहकर जी रहा है तिलकपुर
मिलकर सबों ने सजाया औ संवारा है इसे
देश को इक सूत्र में लगता पिरोता तिलकपुर
मेहमा भी आकर यहाँ सींचते इस बाग़ को
पल रहा संस्कार में एक अरसा से तिलकपुर
शोभता है वेहरी में गांव का हर छोर ही
अंग के भी लाज को यह तो बचाता तिलकपुर
गंग की धरा इसे है नित्य रोज पखारती
आम के भी मंजरों से महकता है तिलकपुर
लोग भी हर कौम के रहते जहाँ सुख चैन से
एकता का पेश करता है नमूना तिलकपुर
है यही सौभाग्य तेरा पुत्र हो इस गांव के
अंजनी तू देखना बस रौशन रहे तिलकपुर
ई 0 अंजनी कुमार शर्मा
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