शनिवार, 18 मई 2013

gazal-phir lagakar----------

                    ग़ज़ल 
फिर लगाकर बस्तियों में आग कोई। 
गा  रहा है दूर जाकर फाग कोई।।
अब कोई मेहमान तो आता नहीं।
फिर उचरता क्यों यहाँ पर काग कोई।।
हम सिमाने पर लड़ाई लड़ रहे थे।
आस्तीं में ही छिपा था नाग कोई।।
जब हुई ऋतुराज के आने की चर्चा।
देखकर हरसा गया फिर बाग कोई।।
अपहरण उसका की आखिर हो गया है।
बेचती फिरती थी बच्ची साग कोई।।
आदमियत तीन कौड़ी की हुई है।
फिर उछाला जा रहा है पाग कोई।।

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