तोडा था अंग्रेज कलक्टर का दंभ (राजा राम मोहन राय के जन्म दिवस पर)--------- आज से 204 वर्ष पहले और आजादी की 1857 की पहली लड़ाई से भी 48 साल पूर्व परतंत्र भारत में राजा राम मोहन राय ने अपने स्वाभिमान और निडर व्यक्तित्व का परिचय दिया था। इनका जन्म कृष्णनगर हुगली जिले के निकट राधानगर गाँव में 22मई, 1722 को हुआ था। राजा राम मोहन राय ने भागलपुर में 1808-1809 तक कलेक्ट्रेट में दीवानी सिसिरस्तेदार (कार्यालय अधीक्षक) के पद पर नौकरी की थी। एक सरकारी कर्मचारी होते हुए भी अपनी अस्मिता और स्वाभिमान को ठेस पहुचने पर तत्कालीन कलक्टर सर फ्रेडरिक हेमिल्टन से विवाद हुआ था। एक दिन ये पालकी पर चढ़ कर गंगा घाट से शहर की ओर जा रहे थे। उसी समय हेमिल्टन घोड़े पर सैर के लिए निकले थे। पालकी में परदे लगे थे, इसलिए कलक्टर को देख नहीं सके। उस समय के शिष्टाचार के अनुसार भारतीयों को अंगरेज अधिका रियों के आगे सवारी से गुजरना मना था।अभिवादन करना अनिवार्य था। राममोहन वैसा नहीं कर सके। आग-बबूला हो कलक्टर साहब ने पालकी रुकवा कर राममोहन को बुरा-भला कहना शुरू कर दिया। राममोहन ने बहुत समझाया लेकिन कलक्टर का गुस्सा शांत नहीं हुआ। तो आगे समझाना व्यर्थ समझ कर हेमिल्टन साहब के सामने ही राममोहन पालकी पर पुनः सवार होकर आगे निकल गए। राममोहन ने कलक्टर की इस करतूत को अपना अपमान समझा। इसकी लिखित शिकायत गवर्नर जनरल लार्ड मिंटो के पास किया। उन्होंने इसकी जाँच करवाई। जाँच में कलक्टर को दोषी पाया गया।अंतत गवर्नर जनरल के न्यायिक सचिव ने भागलपुर के मजिस्ट्रेट को तीखी टिप्पणी के साथ पत्र लिखा कि वे आशा करते है कि सर फ्रेडरिक हेमिल्टन को आगाह किया जायेगा कि भविष्य में वे देसी लोगों के साथ वाद-विवाद में नहीं फंसेंगे। ई० अंजनी कुमार शर्मा
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