एक महान महिला संत, महादेवी अक्का का जन्म 12 वीं शताब्दीमें दक्षिण के कर्णाटक राज्य में उदुतदी नामक स्थान पर हुआ। वो एक महान शिवभक्ता थी। 10 वर्ष की आयु में ही उन्हें शिवमंत्र में दीक्षा प्राप्त हुई। उसने अपने सलोने प्रभु का सजीव चित्रण अनेकों कविताओं में किया है। उनका कहना था कि वो सिर्फ नाम मात्र को एक स्त्री है किन्तु उनका देह -मन -आत्मा सब शिव का है।
कहते है कि स्थानीय जैन रजा कौशिक , महादेवी अक्का के अप्रतिम सौन्दर्य पर मुग्ध हो गया था। परिवार के लोग शादी के लिए सहमत हो गए , क्योंकि राजा के कोप का भाजन परिवार वाले नहीं बनना चाहते थे। लेकिन शादी के बाद भी महादेवी अक्का अपने प्रभु की भक्ति के रंग में रंगी हुई थी। राजा की अभिलाषा कभी पूरी न हो सकी। वो ऐसे नास्तिक राजा की सेवा के लिए अपना जीवन अर्पण न कर सकी। महादेवी ने सांसारिक जीवन से संन्यास लेकर जन्म भूमि तथा ससुराल को छोड़कर साधू हो गई। कहा जाता है कि वो अपने लम्बे बालों से अपना तन ढंकती थी क्योंकि उनका मानना था कि परमात्म प्राप्ति की राह में वस्त्र व्यर्थ के अलंकार हैं। उनकी एक कविता कुछ यूँ है ---'तीर जो लगे तो इतना गहरा कि पाख भी दिखने न पाएं। प्रभु से लिपटो तो इतनी दृढ़ता से कि हड्डियाँ टूट कर चूर हो जाये। ऐसा जोड़ लगा लो प्रभु से कि जोड़ की भी सत्ता न रह पाए।'