ग़ज़ल
किससे किसका भला है
सबने सबको छला है
बोली बदली सबों की
छल बल में जो पला है
साख बढ़ी है बड़ों की
कीचड़ में जो फला है
व्यूटी युग की यही है
हर बंदा दिल जला है
आज यहाँ शातिरी ही
जीने की इक कला है
ना है कोई मुलायम
लोहे में सब ढला है
सच्चा इंसान ही अब
लगता सबको बल है
ई0 अंजनी कु0 शर्मा,भागलपुर
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