शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

gajal...

                          गजल
जोश में ही होश खोकर वो समर्पित हो गए
चोट खाकर घात से तब पूर्ण परिचित हो गए
भद्रता से जो किया करते सामाजिक काम को
समझिये वह आदमी हर तरफ वर्जित हो गए
बादलों को देखकर खुश हो गए मजदूर सब
बिन पटाये ही सभी अब खेत सिंचित हो गए
प्रेम-श्रद्धा अगर है तो देवताओं से हमें
देखकर ही समझ लो फूल अर्पित हो गए
चोट पड़ती अंजनी को अब धरा की मार से
महल पर महल नदियों में जब विषर्जित हो गए।  

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