याद में -------अंगिका
लगाभो एगो हांक
खगोल में खलबल मची जाय
लगाभो एगो छलांग
समन्दर में उँच्चो तरंग उठी जाय
दबोची दहो पहाड़ के
चोटी गिरी जाय
ढेरी दिन से
अयलो नै छै बदलाव।
स्वo डॉo कुमार विमल के हिंदी कविता के
अंगिका अनुवाद डॉo सकलदेव शर्मा द्वारा।
लगाभो एगो हांक
खगोल में खलबल मची जाय
लगाभो एगो छलांग
समन्दर में उँच्चो तरंग उठी जाय
दबोची दहो पहाड़ के
चोटी गिरी जाय
ढेरी दिन से
अयलो नै छै बदलाव।
स्वo डॉo कुमार विमल के हिंदी कविता के
अंगिका अनुवाद डॉo सकलदेव शर्मा द्वारा।
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