अखिल भारतीय अंगिका साहित्य कला मंच के संस्थापक सदस्य और संस्था के पहले महामंत्री स्वर्गीय गुरेश मोहन घोष 'सरल' को याद करते हुए उनका व्यक्तित्व दिल में उभरने लगता है। पक्का सिद्धांतवादी,स्पष्ट वक्ता,अंगिका के कट्टर समर्थक और राजनीति में भी अच्छी पकड़ रखने वाले सरल जी मरणोपरांत संस्था के महामंत्री बने रहे। इन्ही के बगल में रहने वाले संत नगर में स्नेही जी इनके खिलाफ महामंत्री पद के लिए चारो-पाँच बार खड़े हुए पर इनको कभी चुनाव में हरा नहीं सके। मू देखी करना तो इनके नस में था ही नहीं। बोल्ड भी बहुत थे। ऐसे तो उनके साथ बहुत संस्मरण है क्योंकि उनके साथ जिला महासचिव की हैसियत से मैंने कई जिलों का भ्रमण किया करते थे गठन वास्ते। एक बार सरल जी के गांव ओरई जानकीपुर जाना था सरला स्मृति सम्मान सह अंगिका कवि सम्मलेन में। तिलकपुर गांव से जाना था,भतीजा धनबाद से आया था गाड़ी से,उसको मनाये गाड़ी से चलने के लिए वह तैयार हो गया। सियाराम बाबू का लड़का राजेंद्र प्रo सिंह भी गांव आये थे जो कविता लिखते थे। हमने उनको भी चलने के लिए मनाये यह कहकर की कवि सम्मलेन में आपको इंट्रोड्यूस कराया जायगा। जानकीपुर गाड़ी से गए। कवि सम्मलेन शुरू हो गया। राजेंद्र दा का परिचय सरल जी से करवाए। बोले 'सियाराम बाबू के लड़का छिकै,हिनको मोन छै कविता पढ़ै के।' 'अंगिका जानै छै। 'सरल जी पुछलकै। 'नै !' राजेंद्र दा खुद्दे जबाब दे देलकै। 'ते केना होतै ई त अंगिका के मंच छिकै।'सरल जी कहलकै। नै त नहिये पढ़े देलकै। ई त सरल जी के अंगिका प्रेम छलै। आरो सरल जी के बोल्डनेस भी साबित होय छै।
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