ग़ज़ल
लौट आया समय हर्ष उल्लास का
जल रहा हर तरफ दीप विश्वास का
दौर में लग गई आपसी होड़ है
चित्त से पट हुआ मीत इतिहास का
देखिये है यहाँ बाग चारों तरफ
इज्जतें बढ गई किन्तु आवास का
देह में जान अब शेष है ही नहीं
तुक बचा हाय रे आज उपवास का
रोज खुलती इक नई सभा आज तो
गान होता हर तरफ सुनो न्यास का
रोज बढती घरों में नई उलझने
रुख बहुत ही कड़ा दीखता सास का
यूरिया युक्त भोजन खिलाता रहा
लुप्त होता गया देह से मांस का
दफ़न हुए हैं विचार करमचंद के
खेत सूना लग रहा अब कपास का
जल बिना अंजनी मर रहे हैं लोग सब
पीटते हैं सभी ढोलक विकास का
अंजनी कुमार शर्मा
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