जिसका उपकार करिये वह बुरबक समझने लगता है। पडोसी गांव कोलगामा के भोला को दो साल के लिए आम का बगीचा दिया, व्यापार में उसके साथ घूटन महसूस करने लगा। पैसा देने में आनाकानी,हमेशा गफलत में रखना ,ठगपंथी भाषा बोलना यही नियति हो गया। अंत अंत में 65 हजार रुपया बकाया ही रह गया, बोला छठ पूजा में दे देंगे। छठ भी पार कर गया,न भेंट करता न फोन लगता है। असल में ये जिस कौम से आते है उसको कुछ पार्टियों ने सरकारी दामाद बना दिया था। ससुर पार्टियां(राजद,कांग्रेस,सपा,बसपा) अब मृतप्राय हो गई पर अभी भी इनलोगों का आतंकी सोच नहीं गया है। गांव में ऐसे ठगों का एंट्री बंद होना चाहिए। पहले भी कुछ लोगों के साथ भी धोखाघड़ी कर चूका है।
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