शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2017

LPG........

गांवों में एलपीजी का इस्तेमाल शहरों की तुलना में दोगुना तेजी से बढ़ा शहरों की तुलना में लकड़ी और कंडे का इस्तेमाल पांच गुना तक घटा।दिल्ली में बैठकर आकलन करना समय बताएगा। लेकिन इससे और घट गया गाछ लगाने की दर और वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा की दर। और पर्यावरण पर भी खतरा बढ़ने लगा है।  गाछ में थल्ला बनाना,उसकी छटाई वगैरह का काम सब मजदूरों द्वारा किया जाता है, सब काम लकड़ी बेचकर किया जाता है। सिर्फ फलों के भरोसे गाछ का मेन्टेन संभव नहीं है।जो गाछ सूख जायगा उसका भी लेवाल कोई नहीं रहेगा वह सड़ जायगा तो किसान गाछ क्यों लगाएगा सिर्फ सरकार के ढोल पीटने से। पीपुल रिसर्च आन इंडियाज कंज्यूमर इकॉनमी के अनुसार कुकिंग के प्रदूषण से देश में हर साल 10 लाख मौतें होती है, मेरा मानना है यह मौतें लकड़ी के धुओं से नहीं वरन वाहनों द्वारा छोड़े गए जहरीली गैसों से होती है। एक जुगाड़ गाड़ी चलती है जो सिर्फ धुआँ ही छोड़ता है, न कागज न पत्तर, न कोई टैक्स न ड्राइविंग लाइसेंस,इसपर तो प्रतिबंध लग नहीं रहा है। 

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