सोमवार, 26 मार्च 2012

Ghazal-preet me reet

                     ग़ज़ल 
प्रीत में भी रीत का आज  मगर अभाव है 
हुक्मरानों के यहाँ भी क्यों चहुदिश तनाव है 
पास रखकर खंजरों को जो चलाते राज हैं 
मुल्क के ही जिस्म में घाव ही अब घाव है 
ताल का यह हाल क्यों है पूछिये खुद आपसे 
डालता है मुश्किलों में खुद व खुद स्वाभाव है 
आसमां क़ी तरफ भाग रहे अब हमारे कदम 
भभकती है क्यों घरों में आज मगर अलाव है 
मुश्किलों में पड़ गयी क्यों आज इंसानियत भी 
कीचरों में फँस गयी आज अपनी भी नाव है 
रंजिसों को भूलकर आगे बढ़ाओ पैर तुम 
भूल से भी मत कहो कुछ खास अपना चाव है 
देश को गर्दिशों से तुम  उबारो अंजनी 
देखना कैसा लगेगा मनुज का वर्ताव है 
               अभि० अंजनी कुमार शर्मा   

रविवार, 25 मार्च 2012

hindi diwas

हिंदी दिवस
हाँ !हाँ! मनायेगें
क्यों नहीं मनायेगे
दिल से राजभाषा पखवारा
अंग्रेजों ने मार-मार कर
इसे बना डाला है अधमरा
अभी भी कराह रही है हिंदी
आता है गुस्सा
उड़ाते हैं लोग इसकी खिल्ली
अंग्रेगी लाधने वालों का
नहीं बचा है अब ठौर-ठिकाना
फिर भी इसके पीछे
रहते है हम दीवाना
गहराई तक
अंग्रेगी की पहुँच  गयी है जड़
उसी में काटकर कलम
लगा देना है हिंदी का धड
        अभि० अंजनी कुमार शर्मा
प्रकाशित-भारतवाणी, धारवाड़ , सं/ डॉ ० चंदूलाल दुबे , अंक-सितम्बर-२०११,पेज-5 
  

शनिवार, 24 मार्च 2012

paryavaran

                 पर्यावरण
आबादी बढ़ती गयी, ज्यों ज्यों बीते साल
न कोई हल ढूंढता, कितना कठिन सवाल
कटवाते हैं पेड़ जो, आगे बढ़कर आज
बृक्षारोपन पर वही, लगा रहे आवाज
आती है हर साल अब, बूंद बूंद बरसात
ऋतुएँ  दिखलाने लगी, सबको ही औकात
सीने में ओजोन के, अब लाखों है छेद
गगन धुंए से भर गया, कौन कर रहा खेद
गांव-शहर को रोंदकर, चला गया भूचाल
प्रलयी पवन की मार से, है मानव बेहाल 
इस प्राकृतिक कोप ने, लूट लिया आधार
सुनामी के कहर से, उजड़ गए घर-बार
हुआ अगर संसार से, गाछ-बृक्ष का लोप
और बढेगा देखना, कल निसर्ग का कोप
मर जाये जब आदमी, करते सभी विलाप
मगर पेड़ को काटकर, क्यों खुश  होते आप
                         अ० अंजनी कुमार शर्मा
'अहल्या' पत्रिका हैदराबाद के अ०-२०११ अंक में  प्रकाशित,पेज -४६, संपादक-श्री मती आशा देवी सोमानी .     

गुरुवार, 22 मार्च 2012

kavita-'ghar ka sringar'

घर का श्रृंगा
एक कहावत है -
'पेट बिगाड़ती मूडी, घर बिगाड़ती बूढ़ी'
 जो है घरों का श्रृंगार 
लगने लगा है अब सबों को पहाड़
जिस पर था कभी बूढों और बूढियों को नाज
वही बेटा बन गया है अब बाज
घर के सूनापन को
कौन करती है बरबस दफ़न
पर इंतजार में रहता  है उसके लिए कफ़न
जिसके लिए सब दिन अपनी देह गलाई
न्योछावर कर दी पाई पाई
पर नसीब में नहीं होती पूरी और मलाई 
अब वही बूढ़ा और बूढी हो गए सबके लिए भार
पतोहू जिसे देखते ही पकड़ लेती है अपना कपार
मिलती नहीं है इस उम्र में आदर 
उनके पास अब बचा क्या 
सिर्फ खटिया, तकिया और चादर
लेकिन समझो कुछ नादान
करो मत उनका अपमान
एक दिन तुमको भी बूढ़ा बनना है
जैसा करोगे वैसा पावोगे
उनके कष्टमय जीवन में
बांटकर देखो स्नेह और प्यार
देखना तब कैसे आती है घरों में बहार
                    ई० अंजनी कुमार शर्मा
'हम सब साथ साथ' पत्रिका दिल्ली से प्रकाशित,पेज-१७,अंक-सितम्बर-अक्तूबर-२०११,संपादक/शशि श्रीवास्तव 

Kavita -' koyla'

कोयला 
मै हूँ कोयला
मेरा भेष है काला
बांटता हूँ पर उष्मा और उजाला 
घर-घर का हूँ मैं खास
मेरे बिना चूल्हा-चक्की हो जाते उदास 
बिजली की जब होती है मारा मारी
तब शुरू होती है मेरी पारी 
छक्का-चौका उड़ाता हूँ 
राज्य को केंद्र से लड़ाता हूँ
जानता है मुझे विश्व का कोना कोना
बदन जलाकर बन जाता हूँ सोना
जी हाँ ! मैं हूँ कोयला
मेरा घर है खदान
पर कहीं भी रहूँ सरकार का चला जाता है ध्यान
मेरे ऊपर आते ही शुरू होता है चोरों का कहर
मालगाड़ी में खूब करता हूँ सफ़र
माफियाओं का मैं हूँ प्यारा
देखते-देखते लाखों का हो जाता है वारा न्यारा
कीमती से कीमती मशीनें करती हैं मेरी खातिरदारी
आगे-पीछे लगे रहते है लाखों कर्मचारी
ईटें पकाता हूँ, व्यायलरें भी चलता हूँ
और तो और बिजली भी बनाता हूँ
लेकिन याद रखो प्रदुषण भी खूब फैलाता हूँ
अभी तक तो मैंने
पूरा किया है सबका अरमान
चाँद सालों का ही हूँ मेहमान
अब तो मेरे भाय करो कुछ दूसरा ही उपाय
                              ई० अंजनी कुमार शर्मा
प्रकाशित- १)त्रिन्गंधा (पटना), सं0/देवकीनंदन शुक्ल, पेज -२४
                २)कोयला भारती(धनवाद),सं०/नारायण सिंह,पेज-23
   

बुधवार, 21 मार्च 2012

Dohe, published in Anukriti patrika, Jaipur,sampadak/dr.jayshree sharma

दोहे 
विज्ञापन के जोर से, वस्तु हुई अनमोल
आते ही व्यवहार में, खुली ढोल की पोल
गीदड़ भभकी से यहाँ, नहीं चलेगा काम
नहीं चलेगी साहिबी, आठ घडी आराम
लीडर, गीदड़ ने किया, हुआ हुआ का शोर
कुछ भी कहाँ नवीन है, वही जोड़ और तोड़
मंदिर में गाते रहे, रोज धरम के गीत
बाहर आते ही हुई, राजनीति विपरीत
मुर्ग-मुसल्लम मद भरा,छेड़-छाड़ उत्पात
ऐसी ही नववर्ष की, होती है शुरुआत
नया साल में भी लगे, वही पुरानी बात 
दिन उतना काला लगे, जितनी काली रात
ब्रिज मिला है तोहफा, भागलपुर को आज
बदला-बदला लग रहा, इसका कड़क मिजाज
                                ई० अंजनी कुमार शर्मा
जुलाई-सितम्बर,२०११ में प्रकाशित ,पेज-१५ पर

 


aadmi kavita

                    आदमी 
आदमी ! करोड़ों ,अरबों निगल जाता है
आदमी! आदमी निगल जाता है 
आदमी! नदी, नाला , पोखर निगल जाता है
आदमी !हवा, धूप, मेघ निगल जाता है 
आदमी के लिए हो गया है यह सब फूसफास
कुछ दिनों में लगता है 
आदमी निगल जायगा धरती-आकाश
आदमी पी गया है ईमान
मिटा दिया है अपनी पहचान 
आदमी! आदमी मगर तब कहलायेगा 
जिस दिन निगल जायेगा बाढ़, सूखा और तूफान
                                       अंजनी कुमार शर्मा
१)पुष्पक ,संपादक /डॉ.अहिल्या मिश्र , कादम्बिनी क्लब ,हैदराबाद , अंक -१९ में प्रकाशित,पेज -२८  
२)मरू गुलशन ,संपादक /अनिल अनवर ,जोधपुर ,जु०-दिसम्बर ,२०११ में प्रकाशित ,पेज-५९ 
   

मंगलवार, 20 मार्च 2012

samman

कृष्णचंद्र बेरी सम्मान साहित्यकार अंजनी कुमार शर्मा को
    तरुण सांस्कृतिक चेतना समिति, मऊ, शेरपुर, समस्तीपुर (बिहार) के ३० वें महाधिवेशन के अवसर पर एस वर्ष का प्रतिष्ठित कृष्णचंद्र बेरी सम्मान -२०११ भागलपुर के लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री अंजनी कुमार शर्मा को दिया गया l श्री शर्मा को यह सम्मान उनके आंचलिक उपन्यास पर दिया गया l
    विदित हो कि रास्ट्रीय स्तर पर चर्चित  तरुण सांस्कृतिक चेतना समिति मऊ -शेरपुर  विगत कई वर्षों से हिंदी साहित्याकाश के शलाका पुरुष कृष्णचंद्र बेरी कि स्मिरिती में प्रतिवर्ष एक साहित्यकार को 'कृष्णचंद्र बेरी सम्मान ' से सम्मानित करती आ रही है l
    श्री शर्मा का इस प्रतिष्ठित सम्मान पर कब्ज़ा से इनके शुभचिंतकों में खुशी कि लहर है l तरुण सांस्कृतिक चेतना समिति परिवार एवं हिंदी प्रचारक पत्रिका परिवार कि ओर से श्री शर्मा के उज्जवल भविष्य कि कामना l 
हिंदी प्रचारक पत्रिका, संपादक /विजय प्रकाश बेरी 
पिशाचमोचन, वाराणसी -२२१०१०, के पृष्ठ संख्या -५ में प्रकाशित l 

Gazal

                         ग़ज़ल 
रंजिसों का मत बढ़ावो जिन्दगी में सिलसिला
मीत! मन से मन मिला तू और स्वर से स्वर मिला
प्रेम औ पुचकार की भाषा जहाँ होगी सदा
चेहरा होगा यक़ीनन फूल जैसा ही खिला
अर्थ-युग की दौड़ में जब आदमियत है तवाह
कांपता है आसमा औ कँप रही अपनी इला
जिस तरह शोषित यहाँ  अब खो रही इंसानियत 
है कहाँ महफूज कोई कौन सुनता है गिला 
चूर ही होना अगर है आदमी के स्वप्न को 
क्यों न छोड़े हम बनाना रोज ख्वाबों का किला 
फांक होती जा रही है जातियां औ धर्म भी 
लोग बढ़ते  जा रहे अब रोज बँटता है जिला
माफ करना अंजनी बदली यहाँ की अब फिजा 
पूजते ही पूजते ख़ुद हो गए अब हम शिला
ई०अंजनी कु० शर्मा
सत्यदेव पथ, सियारामनगर, भीखनपुर,
भागलपुर-८१२००१
मो०-०९८३५०९२९०४
e-mail- eranjanisharma@gmail.com