शनिवार, 24 मार्च 2012

paryavaran

                 पर्यावरण
आबादी बढ़ती गयी, ज्यों ज्यों बीते साल
न कोई हल ढूंढता, कितना कठिन सवाल
कटवाते हैं पेड़ जो, आगे बढ़कर आज
बृक्षारोपन पर वही, लगा रहे आवाज
आती है हर साल अब, बूंद बूंद बरसात
ऋतुएँ  दिखलाने लगी, सबको ही औकात
सीने में ओजोन के, अब लाखों है छेद
गगन धुंए से भर गया, कौन कर रहा खेद
गांव-शहर को रोंदकर, चला गया भूचाल
प्रलयी पवन की मार से, है मानव बेहाल 
इस प्राकृतिक कोप ने, लूट लिया आधार
सुनामी के कहर से, उजड़ गए घर-बार
हुआ अगर संसार से, गाछ-बृक्ष का लोप
और बढेगा देखना, कल निसर्ग का कोप
मर जाये जब आदमी, करते सभी विलाप
मगर पेड़ को काटकर, क्यों खुश  होते आप
                         अ० अंजनी कुमार शर्मा
'अहल्या' पत्रिका हैदराबाद के अ०-२०११ अंक में  प्रकाशित,पेज -४६, संपादक-श्री मती आशा देवी सोमानी .     

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