गुरुवार, 22 मार्च 2012

Kavita -' koyla'

कोयला 
मै हूँ कोयला
मेरा भेष है काला
बांटता हूँ पर उष्मा और उजाला 
घर-घर का हूँ मैं खास
मेरे बिना चूल्हा-चक्की हो जाते उदास 
बिजली की जब होती है मारा मारी
तब शुरू होती है मेरी पारी 
छक्का-चौका उड़ाता हूँ 
राज्य को केंद्र से लड़ाता हूँ
जानता है मुझे विश्व का कोना कोना
बदन जलाकर बन जाता हूँ सोना
जी हाँ ! मैं हूँ कोयला
मेरा घर है खदान
पर कहीं भी रहूँ सरकार का चला जाता है ध्यान
मेरे ऊपर आते ही शुरू होता है चोरों का कहर
मालगाड़ी में खूब करता हूँ सफ़र
माफियाओं का मैं हूँ प्यारा
देखते-देखते लाखों का हो जाता है वारा न्यारा
कीमती से कीमती मशीनें करती हैं मेरी खातिरदारी
आगे-पीछे लगे रहते है लाखों कर्मचारी
ईटें पकाता हूँ, व्यायलरें भी चलता हूँ
और तो और बिजली भी बनाता हूँ
लेकिन याद रखो प्रदुषण भी खूब फैलाता हूँ
अभी तक तो मैंने
पूरा किया है सबका अरमान
चाँद सालों का ही हूँ मेहमान
अब तो मेरे भाय करो कुछ दूसरा ही उपाय
                              ई० अंजनी कुमार शर्मा
प्रकाशित- १)त्रिन्गंधा (पटना), सं0/देवकीनंदन शुक्ल, पेज -२४
                २)कोयला भारती(धनवाद),सं०/नारायण सिंह,पेज-23
   

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