बुधवार, 21 मार्च 2012

aadmi kavita

                    आदमी 
आदमी ! करोड़ों ,अरबों निगल जाता है
आदमी! आदमी निगल जाता है 
आदमी! नदी, नाला , पोखर निगल जाता है
आदमी !हवा, धूप, मेघ निगल जाता है 
आदमी के लिए हो गया है यह सब फूसफास
कुछ दिनों में लगता है 
आदमी निगल जायगा धरती-आकाश
आदमी पी गया है ईमान
मिटा दिया है अपनी पहचान 
आदमी! आदमी मगर तब कहलायेगा 
जिस दिन निगल जायेगा बाढ़, सूखा और तूफान
                                       अंजनी कुमार शर्मा
१)पुष्पक ,संपादक /डॉ.अहिल्या मिश्र , कादम्बिनी क्लब ,हैदराबाद , अंक -१९ में प्रकाशित,पेज -२८  
२)मरू गुलशन ,संपादक /अनिल अनवर ,जोधपुर ,जु०-दिसम्बर ,२०११ में प्रकाशित ,पेज-५९ 
   

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