सोमवार, 26 मार्च 2012

Ghazal-preet me reet

                     ग़ज़ल 
प्रीत में भी रीत का आज  मगर अभाव है 
हुक्मरानों के यहाँ भी क्यों चहुदिश तनाव है 
पास रखकर खंजरों को जो चलाते राज हैं 
मुल्क के ही जिस्म में घाव ही अब घाव है 
ताल का यह हाल क्यों है पूछिये खुद आपसे 
डालता है मुश्किलों में खुद व खुद स्वाभाव है 
आसमां क़ी तरफ भाग रहे अब हमारे कदम 
भभकती है क्यों घरों में आज मगर अलाव है 
मुश्किलों में पड़ गयी क्यों आज इंसानियत भी 
कीचरों में फँस गयी आज अपनी भी नाव है 
रंजिसों को भूलकर आगे बढ़ाओ पैर तुम 
भूल से भी मत कहो कुछ खास अपना चाव है 
देश को गर्दिशों से तुम  उबारो अंजनी 
देखना कैसा लगेगा मनुज का वर्ताव है 
               अभि० अंजनी कुमार शर्मा   

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