रविवार, 8 अक्टूबर 2017

vaikhri.....

यह अंगिका की वैखरी पत्रिका है। इसके संपादक विद्वान अंगिका-हिंदी साहित्यकार डॉ अमरेंद्र हैं। यह पत्रिका मेरे पर ही केंद्रित है।पहले वर्षों तक एक ही मोहल्ले भीखनपुर में रहा करते थे। अक्सर मुलाकात होती रहती थी। नहीं तो खलीफाबाग चौक स्थित चौधरी जी के गोले में शाम को अवश्य ही मुलाकात होती थी और साहित्य चर्चा होती थी। चौधरी जी गोला के आते बगल में दूकान बनाकर शिफ्ट कर गए ,गोले में भर दिन बसूली और आरी की धुन पर मधुरअंगिका गीत सुनाने वाले अंगिका के धरोहर राम शर्मा भी गुजर गए , अमरेंद्र जी सराय में मकान बनाकर रहने लगे और मैं भी सुलतानगंज रहने लगा। इसी गोले में चंपा फूले डारे डार की पृष्ठभूमि तैयार हुई और अनिल शंकर झा के संपादन में छपी। इस बेहतरीन किताब का बेहतरीन नाम मैंने ही दिया। इसी गोले में मेरा लाठी महात्म का दोहा सुनकर अमरेंद्र जी ने छपवाने की सलाह दी।  अब अनिल जी भी नहीं रहे। अमरेंद्र जी से सिखने-समझने का मौका मिलता रहा है और मिलता रहेगा। अब रंजन जी चित्रशाला में साहित्यकारों के बीच समय देते हैं। दिनेश बाबा,अमरेंद्र ,शिवकुमार शिव ,मनाज़िर साहब के अलावे शहर के तमाम साहित्यकार आते हैं और रचना का आदान प्रदान करते हैं। 

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