शनिवार, 18 मई 2013

vande matram par bahas---

वंदे मातरम को इसलाम के खिलाफ कहे जाने पर एक बहस
पिछले दिनों लोकसभा की बैठक अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किये जाने से ठीक पहले वन्दे मातरम की धुन बजाई गई। धुन बजने के दौरान बसपा सांसद  शाफिकुर्ररहमान बर्क सदन से उठ कर बाहर चले गए। उनके ऐसा करने पर लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने उन्हें चेतावनी भी दी। इसके बाद कुछ नेताओं ने इसे संसद का अपमान माना। विवाद बढ़ने  पर रहमान ने कहा कि वे वंदे मातरम को इसलाम के खिलाफ मानते है इसलिए वे उठ कर चले गए। इसपर आम आदमी पार्टी की सदस्य शाजिया इल्मी ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा -- इस तरह का सोच सस्ते स्तरकी राजनीति से ज्यादा और कुछ भी नहीं है।किसी को भी न तो देश की परवाह है न ही मुसलमान  या किसी और कौम की कोई फिक्र है। अगर है तो बस उन्हें अपनी राजनीति चमकाने की फिक्र है। जहाँ तक वंदे मातरम के इसलाम के खिलाफ होने का सवाल है, तो उस वक्त भी ऐसा मसला आया था जब इस गायन की परंपरा की शुरुआत हुई थी , लेकिन इसमें जिन पंक्तियों पर ऐतराज था, उन्हें उसी समय हटा दिया गया था।  इसे गाने की भी कोई जबरदस्ती नहीं है, आप चाहें तो गायें या न गायें। आप चाहते तो ख़ामोशी से खड़े रह सकते थे, लेकिन इसके गायन के समय ही संसद से वाकआउट करना अच्छी बात नहीं है।सांसद महोदय को समझना चाहिए की जबसे संसद चल रही है तबसे वंदे मातरम का गायन होता चला आ रहा है।अगर उन्हें गायन पर ऐतराज है तो उन्हें चुनाव ही नहीं लड़ना चाहिए था। हम एक बड़े लोकतंत्र में रहते है, जहाँ हमें हमारी हर बुनियादी चीजों के लिए अधिकार मिला हुआ है, इसमें धर्म भी शामिल है। अपने धर्म, अपनी कौम और अपनी विरासत को सजाने-संवारने का हमें पूरा हक़ है, लेकिन साथ ही जब हम जनता के प्रतिनिधि बनते हैं तो हमारा यह नैतिक दायित्व है कि हम अपनी जनता के बीच सौहार्द का संदेश दें।      

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