शनिवार, 10 जनवरी 2015

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अंगिका ग़ज़ल
नै रजाई छै न कम्बल नै कथू  के छै ठिकाना
साँस पीवी मगर घुकड़ी के दिनों भी छै बिताना
देखथें हालत दरकलो केकरा नै तरस आवै
सड़क ही सब सुतै छै अब मर्दाना औ जनाना
पुलिसवा के मुहों से भी चुवै छै लार -पानी
होय छै मुश्किल घरों में लाज भी सबके बचाना
के भला करते गरीबो के बनी के अब हितैषी
लोकतंत्र  में सब मिली के हसोतै छै खजाना
अब गरीब -अमीर के खाई बढ़ी रहलो यहाँ छै
आदमी सब बेईमानी के यहाँ खोजै छै बहाना
भ्रष्ट लोगो सें परेशां आजकल छै अंजनी भी
नियत यहे आय बनले दोसरा  के ही सताना
रोज केना के बितै छै शाम सबठो मित्रवर के
देलकै छोड़ी बड़ों ने छोटका के अब बढ़ाना
ई0 अंजनी कुमार शर्मा

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