सोमवार, 12 मार्च 2018

angika gajal....

अंगिका गजल
लोकार्पण से ही भाषा सभ्भे जिंदा छै
घूंघट के अंदर नै त किताबो शर्मिंदा छै
विद्वानें परिचर्चा में भागो लै छै मन सें
बढ़वै जोशो लिखवैया के बढ़ाय-निंदा छै
मातृभाषा के माथा उठैने छै कवि-लेखक
पर भाषा के उत्थान में सरकार फंदा छै
साहित्य के किताबो ही समझो जान-प्राण छै
शानो छै, जेना फूलो में ललका गेंदा छै
अर्थयुग में लेखन भेलो छै सरपट मजाक
आवे कलम-सियाही भी बेचारा मंदा छै
साहित्य के बीच में बेढंगा घुसपैठी छै
लेखक के गोर तोड़ै वाला ढेर बंदा छै
मंत्री-संत्री के भाषा के ज्ञानो नगण्य छै
जिनको जेब भरे लेली जे रिश्वत-चंदा छै
रंडा घंसी लेखक सब भाषा चमकावै छै
बिन रंडा के जेना काठो लागै गंदा छै
अंगिका भी अंजनी बेरोकटोक दौड़े छै
एकरो ललाट में हरजगह शिव के बिंदा छै 0 

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