गुरुवार, 15 मार्च 2018

sadanand.....

याद में ----
ठुट्ठा पीपर हांफे छै
जे धरती के झाँपन ओकरा चील-गीध सब झाँपै छै।
जे न लगैलकै जी में कहियो अंधड़-झक्खड़-झपसी के
तनियो टा बयार बहला पर थर-थर आबे कांपै छै।
अत्ता-पत्ता बकरी-छकड़ी, डाँटी-डाली हाथी के
 फोर-फूल सब चिड़िया-चुनमुन खाय-खाय के नाँचै छै।
स्वo सदानन्द मिश्र 'साहित्यिक सांढ़ '

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