शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

gazal

                   ग़ज़ल  
लौट आया समय हर्ष उल्लास का 
जल रहा हर तरफ दीप विश्वास का 
दौर में लग गई आपसी होड़ है 
चित्त से पट हुआ मीत इतिहास का 
देखिये है यहाँ बाग चारों तरफ 
इज्जतें बढ गई किन्तु आवास का
देह में जान अब शेष है ही नहीं 
तुक  बचा हाय रे आज उपवास का 
रोज खुलती इक नई सभा आज तो
गान होता हर तरफ सुनो न्यास का
रोज बढती घरों में नई उलझने 
रुख बहुत ही कड़ा दीखता सास का 
यूरिया युक्त भोजन खिलाता रहा 
लुप्त होता गया देह से मांस का 
दफ़न हुए हैं विचार करमचंद  के 
खेत सूना लग रहा अब कपास का 
जल बिना अंजनी मर रहे हैं लोग सब 
पीटते हैं सभी ढोलक विकास का 
                    अंजनी कुमार शर्मा 

   

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